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सिर्फ नारी नही अस्तित्व भी हूं मैं

न रोको मेरी उड़ान समझकर नारी मुझे,     जब घर एक संसार बना सकती हूँ , मैं रहकर घर की चारदीवारी मे,   तो कैसे सोच लिया तुमने के बिखेर दुंगी ये संसार,  निकल कर घर की चारदीवारी से मैं?               नारी हूं मैं,  मैं सहेज कर रखना जानती हूं,                                            मत भूल के अर्धनारीश्वर भी पूर्ण नही,        बिना अस्तित्व के मेरे।              नाम पर नारी के, बेङिया ये रिश्तो की जो मुझे पहनाई है, यह आन-बान-शान है आंगन की अफवाह,              तुमने फैलाई है।  लाघंती नही मैं चोखट,     करके ख्याल रिश्तो का, पर तुमने मुझे कैद ही कर लिया,      समझकर पंक्षि पिंजरे का।  चुप हूं मुझे चुप रहने दो,   शांत हूं मुझे शांत रहने दो, न कर मजबूर मुझे बोलने पर,    गर बान सब्र का मेरी टूटा,  तो टूटकर सब बिखर जाएगा,   मिट जाएगा अस्तित्व उसका, जो सवाल मेरे अस्तित्व पर उठाएगा.....।