" उड़ते ताबूत "

 उड़ते है ताबूत देखो,

  लेकर सासें आसमानो मे,
इरादे भी कम नही है,
  हमारे जवानो के।

जानते हुए भी की यह ताबूत 1960 का है,
  फिर भी वो हँसकर उड़ान भरता है,
         भरोसा मशीन पर नही,
वो अपने बुलंद इरादों पर रखता है।

लेकर हथेली पर सासें अपनी,
वो औरों मे सासें भरते है,
 हजारों की जान बचाने को,
वो आफत मे अपनी जान रखते है।

स्नेह-प्यार अपने परिवार का,
वो अपने देशप्रेम के पीछे रखते है,
ये जूनून ही है उनका,
जो उनमे इतनी ताकत भरते है।

सोचकर यह देश है परिवार उनका,
वो अपने परिवार की खुशियों का सौदा करते है,
बदले मे हजारों जानो के,
वो अपनी क़ुरबानी दिया करते है।

नाराज़गी वो अपने परिवारों की,
हँसकर अपने सरमाथे लेते है,
जूनून उनका उनके देश के लिए
कहाँ कुछ उन्हें समझने देते है।

ये देश है हमारा वीरजवानों का,
जो कभी अभिनन्दन के हौसलों की,
तो कभी राना और अद्वितीय बाल की,
दास्तान की गाथा सुनाते है।

जब रूक जाती है साँसें,
तब थम जाता है वक्त,
पर पहिया समय का,
चलता रहता है हरपल।

जब साँसें थमी राना और अद्वितीय बाल की,
ज़िंदगी ठहर-सी गई उनके परिवार की,
           न दिया जवाब किसी ने,
           होठों पर सबके चुपी थी,
          आंसुओ मे डूबी आँखों मे,
    उड़ते ताबूतो की कातिल दास्तान थी।

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